tag:blogger.com,1999:blog-24323279012957943272024-03-13T12:28:46.435-04:00अभिव्यक्ति रमता है सो कौन घट घट में विराजत है रमता है सो कौन बता दे कोई...............................मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.comBlogger26125tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-57726891875497303382013-10-06T09:37:00.001-04:002013-10-06T09:37:32.658-04:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हमारे देश में सड़क दस किनारे शौचालय करने की जो आदत है आप सोच सकते है की देवालय जाते समय सौचालय के रस्ते जाना पड़े तो कैसा लगेगा विकाश के रस्ते में धरम बाधा नही मोदी जी ने ठीक कहा है सौचालय बनवाओ हर घर गाव शहर देवालय के तरह लगेगा <br />
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<a href="http://4.bp.blogspot.com/-5ALbxQyQyEI/UlFniNPozAI/AAAAAAAAARk/Tl8PeD3Fs58/s1600/images.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-5ALbxQyQyEI/UlFniNPozAI/AAAAAAAAARk/Tl8PeD3Fs58/s1600/images.jpeg" /></a></div>
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<div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-75040430074172802462012-01-31T08:33:00.001-05:002012-01-31T08:36:08.084-05:00हमारे प्रथम प्रधानमंत्री<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/--18-7Adp4q8/TyfuL5uTqnI/AAAAAAAAAQA/8wQPkvx19kI/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/--18-7Adp4q8/TyfuL5uTqnI/AAAAAAAAAQA/8wQPkvx19kI/s1600/images.jpg" /></a></div>बहुत से लोगों का विचार है कि नेहरू ने अन्य नेताओं की तुलना में भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत कम योगदान दिया था। फिर भी गांधीजी ने उन्हे भारत का प्रथम <a class="mw-redirect" href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80" title="प्रधानमंत्री">प्रधानमंत्री</a> बना दिया। स्वतंत्रता के बाद कई दशकों तक भारतीय लोकतंत्र में सत्ता के सूत्रधारों ने प्रकारांतर से देश में राजतंत्र चलाया, विचारधारा के स्थान पर व्यक्ति पूजा को प्रतिष्ठित किया और तथाकथित लोकप्रियता के प्रभामंडल से आवेष्टित रह लोकहित की पूर्णत: उपेक्षा की। अपनी अहम्मन्यता को बाह्य शिष्टता के आवरण में छिपाकर हितकर परामर्श देने वालों की बात अनसुनी कर दी तथा अपने आसपास चाटुकारों की सभाएं जोड़कर स्वयं को देवदूत घोषित करवाते रहे और स्वयं अपनी छवि पर मुग्ध होते रहे।<br />
भारत की बहुत सी समस्याओं के लिये नेहरू को जिम्मेदार माना जाता है। इन समस्याओं में से कुछ हैं:<br />
<ul><li>लेडी माउंटबेटन के साथ नजदीकी सम्बन्ध</li>
</ul><ul><li><a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A8" title="भारत का विभाजन">भारत का विभाजन</a></li>
</ul><ul><li><a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B0" title="कश्मीर">कश्मीर</a> की समस्या</li>
</ul><ul><li><a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8" title="चीन">चीन</a> द्वारा भारत पर हमला</li>
</ul><ul><li><a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A3" title="तुष्टीकरण">मुस्लिम तुष्टीकरण</a></li>
</ul><ul><li>भारत द्वारा <a class="mw-redirect" href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%98" title="संयुक्त राष्ट्र संघ">संयुक्त राष्ट्र संघ</a> की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिये <a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8" title="चीन">चीन</a> का समर्थन</li>
</ul><ul><li>भारतीय राजनीति में <a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6" title="वंशवाद">वंशवाद</a> को बढावा देना</li>
</ul><ul><li><a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80" title="हिन्दी">हिन्दी</a> को भारत की <a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE" title="राजभाषा">राजभाषा</a> बनने में देरी करना व अन्त में अनन्त काल के लिये स्थगन</li>
</ul><ul><li>भारतीय राजनीति में <a class="new" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0&action=edit&redlink=1" title="कुलीनतंत्र (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">कुलीनतंत्र</a> को बनाये रखना</li>
</ul><ul><li><a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6" title="गांधीवाद">गांधीवादी</a> अर्थव्यवस्था की हत्या एवं ग्रामीण भारत की अनदेखी</li>
</ul><ul><li><a class="mw-redirect" href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7_%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B8" title="सुभाष चन्द्र बोस">सुभाषचन्द्र बोस</a> का ठीक से पता नहीं लगाना</li>
</ul><ul><li><a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF_%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8" title="भारतीय इतिहास">भारतीय इतिहास</a> लेखन में गैर-कांग्रेसी तत्वों की अवहेलना</li>
</ul><ul><li><b>सन १९६५ के बाद भी भारत पर <a class="mw-redirect" href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%A5%80" title="अंग्रेजी">अंग्रेजी</a> लादे रखने का विधेयक संसद में लाना और उसे पारित कराना</b> : 3 जुलाई, 1962 को <a class="new" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%A0&action=edit&redlink=1" title="बिशनचंद्र सेठ (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">बिशनचंद्र सेठ</a> द्वारा पंडित जवाहरलाल नेहरू को लिखे गये पत्र का एक हिस्सा निम्नवत है-</li>
</ul><dl><dd><i>राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति सरकार की गलत नीति के कारण देशवासियों में रोष व्याप्त होना स्वाभाविक है। विदेशी साम्राज्यवाद की प्रतीक अंग्रेजी को लादे रखने के लिए नया विधेयक संसद में न लाइये अन्यथा देश की एकता के लिए खतरा पैदा हो जाएगा।...यदि आपने अंग्रेजी को 1965 के बाद भी चालू रखने के लिए नवीन विधान लाने का प्रयास किया तो उसका परिणाम अच्छा नहीं होगा।</i></dd></dl><ul><li><a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%B0_%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE" title="राममनोहर लोहिया">डा. राममनोहर लोहिया</a> ने संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के ऐशो आराम पर रोजाना होने वाले 25 हजार रुपये के खर्च को प्रमुखता से उठाया था। उनका कहना था कि भारत की जनता जहां साढ़े तीन आना पर जीवन यापन कर रही है उसी देश का प्रधानमंत्री इतना भारी भरकम खर्च कैसे कर सकता है। इसे '<b>तीन आने की बहस'</b> कहते हैं। लोहिया जी ने सरकारी तंत्र के मुगलिया ठाठ-बाट की निंदा इतने कड़े शब्दों में की थी कि सारा तंत्र भर्राने लगा था।</li>
</ul><ul><li>लोहिया ने अति प्रशंसित <a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%9F_%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7_%E0%A4%86%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%A8" title="गुट निरपेक्ष आंदोलन">गुट-निरपेक्षता</a> की विदेश नीति पर प्रश्नचिह्न लगाए थे और नेहरूजी की '<b>विश्वयारी'</b> पर तीखे व्यंग्य बाण चलाए थे।</li>
</ul><ul><li>सन् 1955 में <a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8" title="चीन">चीन</a> द्वारा किए गए आक्रमण की बात देश से छिपाकर रखी गई। 13 नवम्बर, 1962 को श्री <a class="new" href="http://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%A0&action=edit&redlink=1" title="विशनचन्द्र सेठ (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">विशनचन्द्र सेठ</a> ने कहा था-</li>
</ul><dl><dd>"सन् 1951 में <a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%A4" title="तिब्बत">तिब्बत</a> का दान हुआ और सन् 1955 में भारत पर चीन का हमला हुआ। एक तरफ भारत पर चीन का हमला होता है और दूसरी तरफ चीन के प्रधानमंत्री इस देश में पधारते हैं। सन् 1959 में यह बात लोकसभा में बतलाई जाती है कि चीन का हमला सन् 1955 में हुआ था। मैं बड़े आदर के साथ यह प्रश्न करना चाहता हूं कि इस प्रजातंत्र का अर्थ क्या है? क्या कारण था कि देश को चार वर्षों तक अंधेरे में रखा गया? अगर सन् 1959 की बजाय चार साल पहले यानी सन् 1955 में ही आदरणीय प्रधानमंत्री ने देश को बता दिया होता कि चीन ने हम पर हमला किया था तो देश में "हिन्दी चीनी भाई भाई" का नारा न लगता। अगर जनता को इस बात की जानकारी होती तो देश में उस आदमी के लिए, जिसने हमारे देश पर हमला किया है, किसी प्रकार के स्वागत का उत्साह न होता।"</dd><dd>साभार. </dd></dl></div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-55870664531358572972011-12-25T10:49:00.000-05:002011-12-25T10:49:51.411-05:00लहसुन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/-yTtoBCRxnaY/TvdDyluQIWI/AAAAAAAAAP0/aNkSeynt8iU/s1600/images1.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-yTtoBCRxnaY/TvdDyluQIWI/AAAAAAAAAP0/aNkSeynt8iU/s1600/images1.jpg" /></a></div>लहसुन से आप सभी परिचित हैं,समानय रूप से भोजन में हम सभी इसका प्रयोग करते हैं इसका एक प्रयोग बडा ही गुडकारी हैं-2-5 कली लहसुन दिन में एक बार कभी भी देशी घी में तलकर कलियॉ चबाकर खा ले तथा घी उपर से पी ले-इससे सभी वात कष्ट,आमवात , सन्धिवात,जोडो के कष्ट,सुस्ती,गैस का कष्ट,यौनांग की दुर्वलता,शिथिलता,कमजोरी आदि व्याधियॉ दुर होगी ।</div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-9980925838991434272011-12-25T09:13:00.000-05:002011-12-25T09:13:44.916-05:00योग एक परिचय<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><a href="http://1.bp.blogspot.com/-nMG9SZQ8OKM/TvcvXS-bTQI/AAAAAAAAAPo/lUg8zC-23VA/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/-nMG9SZQ8OKM/TvcvXS-bTQI/AAAAAAAAAPo/lUg8zC-23VA/s1600/images.jpg" /></a>''योग'' शब्द संस्कत के ''युज'' धतु से बना हैं, जिसका अर्थ है-बॉधना,जोडना, मिलाना, युक्तकरना ध्यान को नियंत्रित करना केन्द्रित करना,उपयोग में लाना या लगाना । ''योग'' का अर्थ संयोग या मिलन भी माना जाता हैं । अपनी इच्छा को भगवान की इच्छा में संयुक्त कर देना ही सच्चा योग हैं । अर्थात मन वाणी कर्म से र्इश्वर में विलीन होना ही योग हैं, जिसमें आपकी समस्त क्रियाये अनुशासित होती हैं, व ईश्वरीय निर्देशानुसार संचालित हो रही है जीवन में ऐसी सम्यावस्था को प्रस्थापित करने की क्रिया को योग कहते हैं ।<br />
भगवतगीता में श्रीक़ष्ण ने कहा है-'' जब मन, बु्द्धि ओर अहंकार वश में होते हैं और वो चंचल इच्छाओ से रहित होते है-जिससे वो आत्म अवस्थित रह सके, तब पुरूष युक्त होता हैं।जहॉ वयु नही बहती, वहॅा दीपक कॉपता नही हैं ।<br />
योग का सही अर्थ है -आनन्द,सुख,वेदना,द:ख के संसर्ग से मुक्ति ।<br />
श्रीमदभागवत गीता में भगवान ने कर्मयोग के सिद्धान्त पर आधरित योग की एक अनय परिभाषा भी दी है ''तुम्हारा कर्म पर ही अधिकार है, फल पर नही '' अर्थात जो तुम्हारा कर्म हो </div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-16380041996974781652011-12-20T11:10:00.000-05:002011-12-20T11:10:17.122-05:00एकोनाइट<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">सर्दीयो के इस मौसम की यह एक महत्वपूर्एा उपयोगी दवा हैं,किसी को भी सर्दी लगे तो हमारा ध्यान सर्वप्रथम इसी दवा की तरफ जाता हैं 30वी शक्ति की दवा 1/2 घन्टे पर दे सकते हैं, डाक्टर की सलाह अपेक्षित</div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-81822763046536955502011-12-20T09:34:00.000-05:002011-12-20T09:34:18.318-05:00दलीय लोकतंत्र-2<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/-IrITyorhVF8/TvCUOm-qgkI/AAAAAAAAAPQ/M7Z_-rsc1C0/s1600/%25E0%25A4%25B9images.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/-IrITyorhVF8/TvCUOm-qgkI/AAAAAAAAAPQ/M7Z_-rsc1C0/s1600/%25E0%25A4%25B9images.jpg" /></a></div>किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलो का विशेष् महत्व होता हैं राजनीतिक दललोकतांत्रिक व्यवस्था मे रीढ की हड़डी की तरह होते है, यह जितने ही लोकतांत्रिक होगे देश का लोकतंत्र उतना ही मतबूत एवं दीर्घजीवी होगा ।<br />
अपने देश भारत में अभी भी राजनैतिक दलो का लोकतं9 अपने प्रारंभिक अवस्था में है, इसके पीछे मुख्य श्रेय काग्रेस पार्टी को जाता हैं,जिसने स्वतंत्रता प्राप्ति के वाद से ही अपने दल से लोकतंत्र को निकाल के फेक दिया, इसके विकास में सबसे अधिक श्रेय यदि किसी पक्ष में जाता है वह भाजपा के पक्ष में हैं वामपंथियो में भी लोकतात्रिक प्रकया है किन्तु एक रूढि वादी आवरण ये घिरी हैं,जहॉ तक क्षेत्रिय पार्टीयो का सवाल है तो वो लांकतंत्र से मीलो दूर हैं ओर उनकी अतिविणियां प्राइवेट कम्पनियो की तरह है , जैसे कांग्रेस के अन्दर है ,वो राजनीति को व्यवसाय की तरह करती हैं अत: उनकी सेरचना भी व्यवसायिक कम्पनी की तरह होती हैं ।<br />
भारतीय परिदश्य में यहाॅ के दलो में लोकतंत्र का आना एक दूर की कौडी हैं,किन्तु प्रारम्भ से ही यहॉ दलीय लोकतंत्र की व्यवस्था भी उसी तरह करनी चाहिये थी जिस तरह निर्वाचन के लिए चुनाव आयोग की व्यवस्था की गयी है,दलीय संगठन के चुनाव दलो के अपने कोष से एवं आम चुनाव सरकारी धन से कराये जाने चाहिये, दल में सामुहिक नेतत्व का विकास हो एवं दल की पहचान व्यक्ति के स्थान पर सिद्धान्तो के आधार पर होनी चाहिये, इन सब के लिए यह जरूरी है कि लोतात्रिक परंपराओ की स्थापना एवं उसका कठोरता से अनुपालन सुनिष्चित किया जाये,तब तक भरतीय लोकतंत्र का स्वर्ण युग नही आयेगा ।<br />
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</div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-15611841771912168612011-12-13T09:23:00.000-05:002011-12-13T09:23:06.851-05:00दलीय लोकतंत्र 1<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><a href="http://3.bp.blogspot.com/-_RfZ7LXSyd4/Tudfdo2EdMI/AAAAAAAAANs/MzkGEzs1nIs/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="153" src="http://3.bp.blogspot.com/-_RfZ7LXSyd4/Tudfdo2EdMI/AAAAAAAAANs/MzkGEzs1nIs/s200/images.jpg" width="200" /></a>आज का लोक तंत्र अब्राहम लिकन की उस युक्ति पर आधारित है जिसमें आपने लोकतंत्र की परिभाष करते हुये कहा था कि लोकतंत्र जनता से जनता द्वारा और जनता के लिए संचालित किया जाता हैं ।लेकिन प्रक्रियागत रूप से इस परिभाषा को लागू करने के रास्ते भिन्न -भिन्न हैं अब के देशइतनेछोटे नही रहे कि आम जनता द्वारा संचालित प्रत्यक्ष लोकतंत्र का पालन किया जा सके वरन इसके स्थान पर प्रतिनिधात्मक लोकतंत्र का आश्रय लिया गया हैं।<br />
भारत एक नवीन लोकतांत्रिक देश हैं,जहॉ पूर्व से अन्य देशो में प्रचलित लोकतांत्रिक प्रणालियो का संकलन करके एक सेविधान के माध्यम से लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना की गयी ।<br />
हमने सिद्धान्त तो विभिन्न देशो की शासन प्रणालियो से ग्रहण कर लिया लेकिन व्यवहार के रूप में वो परिपक्वता नही ला सके परिणाम स्वरूप हमारा लोकतंत्र सैद्धान्तिक अणिक हो गया एवं व्यवहारिक कम ।<br />
सिद्धान्त मे हमने लोकतांत्रिक बहु दलीय प्रणली को अपनाया है किन्तु हमारे देश के राजनीतिक दलो की आन्तरिक प्रणाली प्रइवेट कम्पनियो की तरह है जो व्यक्ति पूजक ,अल्पायु व सिद्धान्त विहिन होती हैं,यही से हमारा लोकतंत्र प्रारंभ होता है,यह दल नितान्त अलोकतांत्रिक ढंग से यह निर्धारित करते है कि उनकी तरफ से कौन सा व्यक्ति औपचारिक रूप से लोकतंत्र में जनता का प्रतिनिधि होगा उनकी निष्ठा जनता से ज्यादा अपने दल के प्रति होती है कहने को तो जन प्रतिनिधि होते है लेकिप वास्तव में वह दल प्रतिनिध होते हैउनके सारे संसदीय आचरण दलगत भवना से पूर्ण होते है,ये संसद में जनता की इच्छा के बजाय अपने दल की इच्छा का ही प्रतिनिधित्व करते है उस दल की जिसकी संरचना ही प्रइवेट कम्पनी की तरह की है यानि एक व्यक्ति की इच्छा का प्रतिनिधित्व यही आकर लोक समाप्त हो जाता है और केवल तंत्र ही शेष रह जाता है<br />
आवश्यकता है किसी देश में मजबूत लोकतंत्र की स्थापना के लिए वहाॅ काम करने वाले दलो में लांकतंत्र का विकास किया जाये दल के प्रारंभिक सदस्य से लेकर राष्टीय अध्यक्ष तक एक कठोर संवैधानिक व्यवस्था के तहत आबद़ध होने चाहिये ।<br />
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</div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-31212047594243271372011-12-13T08:14:00.000-05:002011-12-13T08:14:56.569-05:00मंजिल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/-su1TgMUCoUQ/TudPqtJ33XI/AAAAAAAAANk/yrxYOsvewVo/s1600/%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25A4images.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="71" src="http://3.bp.blogspot.com/-su1TgMUCoUQ/TudPqtJ33XI/AAAAAAAAANk/yrxYOsvewVo/s200/%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25A4images.jpg" width="200" /></a></div><div style="text-align: center;">ये शाम यू ही ढलेगी </div><div style="text-align: center;">ये रात यू ही चलेगी </div><div style="text-align: center;">दिन का उजियाला आयेगा </div><div style="text-align: center;">जीवन का फसाना गायेगा</div><div style="text-align: center;">ये पहिया यूही घूमेगा </div><div style="text-align: center;">वक्त यू ही झूमेगा </div><div style="text-align: center;">तुम चल सकते हो तो चल जाओ </div><div style="text-align: center;">तुम ढल सकते हो तो ढल जाओ </div><div style="text-align: center;"> इतिहास यही दुहरायेगा </div><div style="text-align: center;">अंजाम वही बतलायेगा</div><div style="text-align: center;">है यही फसाना दुनिया का</div><div style="text-align: center;"> अंजाम पुराना दुनिया का</div><div style="text-align: center;"> जो वक्त के आगे रहता है </div><div style="text-align: center;">अंजाम वही बस सहता है</div><div style="text-align: center;">इतिहास वही दुहराता है </div><div style="text-align: center;">मंजिल पर पहुच जो पाता है</div><div style="text-align: center;"><br />
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</div></div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0Sakaldiha, उत्तर प्रदेश, भारत25.3458835 83.25862940000001825.338669499999998 83.251076400000017 25.3530975 83.266182400000019tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-71705227317419186462011-12-12T09:46:00.000-05:002011-12-12T09:46:34.837-05:00वेदना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">वो दिल भी क्या जो तुमसे मिलने की दुआ न करे <br />
मै तुमको छोउ के जिन्दा रहू खुदा न करे ।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/-UeDn7sA25hQ/TuYTtL0aFyI/AAAAAAAAAKc/fulOXHT4Yvc/s1600/7index.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="200" src="http://3.bp.blogspot.com/-UeDn7sA25hQ/TuYTtL0aFyI/AAAAAAAAAKc/fulOXHT4Yvc/s200/7index.jpg" width="137" /></a></div>रहेगा साथ तेरा प्यार जिनदगी बनकर<br />
ये बात और मेंरी जिन्दगी वफा न करे<br />
फलक पे आये सितारे तेरी सुरत बन के<br />
ये रात बीत न जाये कोर्इ दुआ न करे<br />
जमाना देख चुका है परख तुका है हमे<br />
यतीम जान के काबे में इल्तजा न करे<br />
हॅु खुसनसीब जो पाई है जुदाई तेरी<br />
हमारी याद कभी तुमको बमजदा न करे<br />
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</div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-44369329690828775992011-12-12T09:30:00.000-05:002011-12-12T09:32:37.257-05:00यादे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/-Lwee8MPdS1k/TuYP2spwsYI/AAAAAAAAAKU/aT9wQ6WWxYM/s1600/6images.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="200" src="http://2.bp.blogspot.com/-Lwee8MPdS1k/TuYP2spwsYI/AAAAAAAAAKU/aT9wQ6WWxYM/s200/6images.jpg" width="163" /></a></div>आप आये मेंरी यादो में खुदा खैर करे<br />
नीद आती नही रातो में खुदा खैर करे<br />
दिल के जजबात ने अंगडाई ली ऑसू बनकर<br />
एक तुफान उठा आज खुदा खैर करे<br />
बेवसी मन में उठी ऐसी दबाये न दबे<br />
दिल ने फिर कर दिया फरियाद खुदा खैर करे<br />
याद आये अब तेरी शीर्फ हकीकत बन कर<br />
ख्वाबो ने कर दिया इनकार खुदा खैर करे<br />
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</div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-16110847189599544922011-12-12T09:20:00.000-05:002011-12-12T09:20:03.709-05:00दर्द<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/-ULzbPpfRf1s/TuYNRb5JJuI/AAAAAAAAAKM/ltiO0ZH1AIU/s1600/5images.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="200" src="http://3.bp.blogspot.com/-ULzbPpfRf1s/TuYNRb5JJuI/AAAAAAAAAKM/ltiO0ZH1AIU/s200/5images.jpg" width="169" /></a></div>खत डालिए हुजुर को आदाब बोलिए <br />
आप आ रहे हैं आज बहुत याद बोलिए<br />
<span style="font-size: small;">तनहाई भरे दर्द का एहसास क्या लिखे </span><br />
<span style="font-size: small;">आप अपने ही जख्मो की बस फरियाद बोलिए </span><br />
<span style="font-size: small;">गर दर्द दबाये न दबे वेवफा है वो </span><br />
<span style="font-size: small;">बस दर्द में डुबी हुयी एक बात बोलिए </span><br />
<span style="font-size: small;">दर्द हद से गुजर जायेगा पानी बनकर </span><br />
<span style="font-size: small;">अपने ऑखो में बसे दर्द की इबरात बोलिए </span> </div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-34809758994606321762011-12-12T09:10:00.000-05:002011-12-12T09:10:35.978-05:00तडप<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/-lZ-shwJgql8/TuYLDtTAWCI/AAAAAAAAAKE/QDZ3JiYqECw/s1600/4images.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="149" src="http://1.bp.blogspot.com/-lZ-shwJgql8/TuYLDtTAWCI/AAAAAAAAAKE/QDZ3JiYqECw/s200/4images.jpg" width="200" /></a></div>राहत न सही दर्द की सौगात बहुत है ,<br />
मेरे लिए एक पल की मुलाकात बहुत है।<br />
मैं चॉदनी औ धूप का मोहताज नही हॅू,<br />
मुझको तेरे जलवे की ए बरसात बहुत हैं।<br />
मरने के लिए जहर जरूरी तो नही हैं ,<br />
मुढको तेरी चुभती हुयी एक बात बहुत हैं,<br />
अब और किसी सय की तमन्ना नही मुझको <br />
हाथो में मेरे तुने दिया हाथ बहुत है ।<br />
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</div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-29921708422597004172011-12-03T08:57:00.003-05:002011-12-06T05:55:05.273-05:00बेगार करने को मजबूर उत्तर प्रदेश मनरेगा मानदेय कर्मी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 18pt;">बेगार करने को मजबूर उत्तर प्रदेश मनरेगा मानदेय कर्मी</span><span style="font-size: 18pt;"></span></div><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 12pt;">केन्द्र सरकार की अति महत्वाकाक्षी योजना मनरेगा जब अपने मानदेय कर्मियो से ही बेगार ले रही है तो देश के ग्रामीण बेरोजगारो को कहां से रोजगार दे पायेगी ा</span> <br />
<div class="MsoNormal"><br />
</div><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 12pt;">मनरेगा योजना के आरम्भ से ही योजना के कुशल संचालन के लिए नई भर्तीयो का प्रावधान इसमें किया गया था,जिसके अनुपालनार्थ देश मे व्याप्त भीषण बेरोजगारी का मजाक उडाते हुये राज्य सरकारो द्वारा न्यूनतम मानदेय के आधार पर ग्राम कोवार्डिनेटर,ग्राम रोजगार सेवक, व्लाक कोवार्डिनेटर,तकनीकी सहायक, कम्प्यूटर आपरेटर, लेखा लिपिक,अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी,एवं जिला कोवार्डिनेटरो की भर्ती की गयी,जिन्हे सामान्य गुजारा भत्ता की तरह प्रशासनिक मद से मानदेय देने का प्रावधान किया गया था,जब कि सरकारी विभागो में समकक्ष पदो पर आसीन कर्मचारी कई गुना अधिक बेतन व भत्ता उठाते हैंा</span> <br />
<div class="MsoNormal"><br />
</div><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 12pt;">नये शासनादेश के तहत जब से मानव दिवस के आधार पर प्रशासनिक मद का निर्धारण किया जाने लगा है तब से इनका मानदेय भी बन्द हो गया है,क्यो कि मानव दिवस के निर्माण में इनका योगदान यहां के प्रशासनिक ढांचे को देखते हुये नही के बराबर है,</span> <br />
<div class="MsoNormal"><br />
</div><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 12pt;">आथिर्क संकट से गुजर रहा इनका परिवार आज भूखमरी के कगार पर है,</span> <br />
<div class="MsoNormal"><br />
</div><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 12pt;">मनरेगा के कुछ मानदेय कर्मियो से सम्पर्क करने पर पता चला कि परिवार चलाने के लिए वो रात में पार्टटाइम जांव कर रहे है ,बेरोजगारी की समस्या इतनी बडी है कि डूबते को तिनके का सहारा की तरह मिला रोजगार छोडा भी नही जा सकता,</span> <br />
<div class="MsoNormal"><br />
</div><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 12pt;">पता नही इस देश की सरकारे कब तक बेरोजगारो का शोषण करती रहेगीा</span></div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-40933298038068626362011-10-12T07:05:00.005-04:002011-12-13T06:03:15.164-05:00अनन्त<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="background-color: white; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">आत्मा की अनन्त योनियो में एक है मानव योनि ,यह योनी देवताओ के लिए भी दुर्लभ बताइ गयी है ा इसकी सही व्याख्या का अधिकार एवं योग्यकता तो केवल अनन्त कोटी ब्रह्रामाण्ड नायक मे ही निहित है,लेकिन स्वअन्त; सुखाय की भावना से व परब्रह्रा के आर्शिवाद से इसकी टुटी-फुटी व्याख्या आपके चिन्त न के लिए प्रस्तुत है , आर्शीवाद की अपेक्षा में------------------- समस्त जड –चेतन मे निहित सत्ता का नाम आत्मा है, जो परमात्मा के अविनाशी अंग के रूप मे सभी भूत प्राणियो मे निहित रहती है,जो अनन्त शक्तियो का स्रोत समझी जाती है इस शक्ति के संचालन के लिए जिन संचालक यन्त्रो की आवश्यकता होती है उन यन्त्रो मे सबसे सामर्थ्यवान यंत्र मानव शरीर है इसमें विवेक वुद्धि का जो अपार सागर निहित है, वह किसी भी अन्य योनि के भाग्य में नही लिखा है, मानव शरीर समस्ति प्रत्यक्ष घटनाओ का स्वत. दृष्टा होता है अन्य योनियॉ इस भॉति दृष्टा नही होती जिस प्रकार मानव धटनाओ को देखकर उसका मंथन कर लेता है वैसा किसी अन्य योनि में सम्भव नही है ामानव को अभ्यास की एक ऐसी विरासत प्राप्त है जिसक माध्यम से मानव अजान-से जान ,मूर्खसे विद्धान अबोध से बोध अवस्था को प्राप्त होता है,मानव जीवन का सबसे बडा साध्य उस अजात को जात करना है ,जिसके जान मा्त्र से उसे न तो किसी वस्तु की अपेक्षा रहती है न ही उसके लिए कोइ वस्तु दुर्लभ ही रहती है ा नि. सन्दे ह यह संसार नस्वर है किन्तु यह मानव का कुरूक्षेत्र है यहॉ की भैतिक वस्तुये मानव के साथ नही जाती है किन्तु कर्मो के साथ निहित अभैातिक अनुराग उसके साथ जाता है अविश्वासनीय रूप से उस अनुराग केा त्या्गने की व्यवस्था् भी मानव को उपलव्ध इसी जगत मे होती है किन्तु कोइ विरला मानव तन ही उसका उपयोग कर पाता है अधिकांश तो और भी कठोरता से उसमे लिप्त हो जाते है ा<br />
मानव शरीर सर्वोच्च साधन है इसमे अवसर की अधिकता है,कर्म माध्यम है, इस भव सागर से पार जाने के लिए अन्य् योनियो को यह सौभाग्य कहॉ ा<br />
मानव शरीर सर्वोच्च् साधन है साधन दो है यदि तुम शरीर के अन्दर उस आत्मा की खोज करना चाहते हो तो यह जान मार्ग हे,यदि वाहर खोज करना चाहते हो तो यह भक्ति मार्ग है<br />
इसमे अवसर की अधिकता है संसार के आरोह अवरोह ही इसके अवसर है<br />
कर्म माध्यकम है, आरोह अवरोहो पर विजय पाने की कला ही तुम्हारा कम्र है,वह विजय जो नये आरोह अवरोहो को न जन्म दे इति</span><br />
<div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो<img alt="" height="1" src="https://blogger.googleusercontent.com/tracker/2432327901295794327-6080262722964511782?l=gaharvar.blogspot.com" width="1" /></div></div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-88456116983113014482011-10-12T07:05:00.004-04:002011-12-06T05:54:04.726-05:00स्वरर्ग -नर्क<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="background-color: white; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">एक फकीर था जीवन भर उसने पुण्य का कार्य किया ,जाने अनजाने उससे एक अपराध हो गया ,मत्यु के समय यमदूत आये उन्होने फकीर के सामने प्रस्ताव रखा कि अपनी इच्छानुसार वह पहले स्वर्ग या नरक का चयन कर सकता हैं ा फकीर ने नरक मॉगा यमदुत उसे नर्क में लेकर चले गये ,नर्क में उसने देखा कि मनुष्येा के हाथ बीस-बीस मीटर लम्बे हैं सब दुवले पतले व दुखी थे,खाने का समय था सबके सामने अच्छे-अच्छे भोजन रख दिये गये लेकिन किसी का हाथ अपने मुह तक नही पहुच पा रहा था थेाडे प्रयास के बाद उन लोगो ने दूसरे के सामने रखा भोजन उठा कर फेकना प्रारम्भर कर दिया और सभी भूखे ही रह गये ं फकीर के नर्क का समय समाप्त हो गया दूत उसे स्वर्ग मे ले गये वहॉं भी लोगो के हाथ उतने ही लम्बे थे लेकिन सभी स्वथ्य एवं प्रस्रन थे फकीर को वडा आश्चर्य हुआ ा खाने का समय यहॅा भी आया उसने देखा यहॉ लोग अपने लम्बे हाथो से दूसरे को भोजन करा रहे थे थोडी देर मे सबने भोजन कर लिया ा फकीर को स्वरर्ग -नर्क का आशय समझ में आ गया था ा</span><br />
<div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो<img alt="" height="1" src="https://blogger.googleusercontent.com/tracker/2432327901295794327-8041576165570264849?l=gaharvar.blogspot.com" width="1" /></div></div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-13717259531750011092011-10-12T07:00:00.003-04:002011-12-06T05:58:36.857-05:00भ्रष्टाचार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="background-color: white; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">निजी एवं सर्वजनिक जीवन के भ्रष्टाचार से सभीपरेशान हैं सब चाहते है कि इससे मुक्ती मिले लेकिन यह विचारणीय है कि क्या वास्तव में वह इतने ही प्रतिबदद्यध भी है कि उनके जीवन मे भ्रर्ष्टाचार से हलचल न मचे हम स्वये भ्रष्टचार को प्रश्रय दे और यह अपेक्षा भी रखे कि हमारे जीवन मे भ्रष्टाचार कोइ बाधा न पैदा करे आज बडी विचित्र स्थिति है सभी लोग भ्रष्ट तरीके से अपनी स्वार्थ सिद्धी तो चाहते है लेकिन साथ ही यह भी चाहते है कि दूसरा उनके साथ सद् आचरण करे इस बाजारवाद के दौर मे जब हर व्यक्ति एक दूसरे से गला काट प्रतियोगिता में लगा है तो फिर किससे अपेक्षा कीजा रही है कि वह सद् आचरण को अपनायेगा क्या किताबो में लिखे वो निर्जिव अच्छर हमे सदाचार का पाठ पढाने के लिए पर्याप्त है क्या सदाचार के लिए इकलौते वही जिम्मेदार है जो स्वये निर्जिव है हम क्यो नही सोचते</span></div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-11005118231141162932011-10-09T07:19:00.002-04:002011-12-06T06:00:27.021-05:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">चंचल मन</div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-51350275941657714442009-04-11T13:50:00.001-04:002011-12-06T06:01:05.802-05:00हम मानव है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">सूर्य जलता है <br />
अपने अस्तित्व के साथ <br />
इस तपो वन मे <br />
हमें जीवन देने के लिए <br />
जलना ही इसका जीवन है<br />
नदी बहती है <br />
खुद को विलीन करने के लिए<br />
ताकि हम प्या से न रहे <br />
खेत सूखे न रहे<br />
बहना ही इसका अर्पण है <br />
बादल बरसते है <br />
मिटा देते है खुद को <br />
धरती की हरियाली के लिए <br />
हमारी खुसहाली के लिए <br />
बरसना ही इनका समर्पण है<br />
व़क्ष बढते है<br />
जड तना पत्तीयो संग <br />
खुद को समर्पित करते है <br />
हमारी सेवा के लिए <br />
ताकि हम आबाद रहे <br />
यही नका तर्पण है <br />
हवा चलती है<br />
दे कर शीतल बयार<br />
विलीन हो जाती है <br />
उस अनन्त मे <br />
जिसका कोई अन्तह नही <br />
हम मानव है <br />
जी लेते है खुद मर्जी से<br />
मिट जाते है खुद गर्जी से </div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-59920011245911959772009-03-28T10:21:00.003-04:002011-12-12T11:00:01.364-05:00मैं नही था<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">मै प्रकाश नही था<br />
<br />
पर देख सकता था<br />
<br />
जलते हुये मकान को <br />
उसी के प्रकाश मे<br />
<br />
गिरते हुये अस्तित्व के साथ<br />
<br />
<br />
मैं ऑच नही था<br />
<br />
पर महसूस कर रहा था<br />
<br />
तपते हुये जीवन की<br />
<br />
दहकती हुयी ज्वाला को<br />
<br />
उसी की तृष्णा के साथ<br />
<br />
<br />
में धारा नही था<br />
<br />
पर बह रहा था<br />
<br />
भावनाओ के भॅवर मे<br />
<br />
उसी के चर्कवात मे<br />
<br />
उसीके संकल्पो विकल्पो के साथ</div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com31tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-8117957999608592522009-03-28T10:09:00.001-04:002011-12-06T06:02:57.389-05:00अनन्त<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">अभिलाषाओ ने दी<br />
जीवन को गति <br />
मन की न रूकने वाली<br />
<br />
ये अनन्त अभिलाषाये<br />
<br />
जीवन की न थमने वाली<br />
<br />
ये अनन्त गतियॉं <br />
नित बनते नुतन सपने <br />
सजती सपनो की डोली<br />
<br />
हम देखते रह गये इस<br />
<br />
अनन्त मझधार वाली नौका को <br />
और बुनते रहे <br />
उस पार जाने के सपने<br />
<br />
न आया किनारा<br />
<br />
न थमी अभिलाषाये<br />
<br />
सपने भी बन्द नही हुये<br />
<br />
डोली भी सजी रह गयी<br />
<br />
गति चलती रह गयी<br />
<br />
न रहा देखने वाला<br />
<br />
वह विलीन हो गया<br />
<br />
उस अनन्त में<br />
<br />
जिसका कोई अन्त नही</div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-37380441545388156942009-03-23T13:48:00.001-04:002011-12-06T06:03:30.524-05:00श्रद्धान्जली<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">शहीदे आजम की शहादत क्या उन नौजवानो को कुछ सीख दे पायेगी जो आज संकीर्ण से संकीर्ण दायरे में खुद सिमटाते हुये संकीर्णता की नित नई बुलन्दीयो को छू लेने के लिए आतुर है <br />
गॉंधी-इर्विन समझौते के बाद शहीदे आजम को फॉसी दी गयी थी ,इस शहादत ने अंग्रेजी सरकार की चूले हिला दिया पूरा देश इन नौजवानो की शहादत पर रो पडा था,आज हम शायद उस शहादत का मुल्यांकन नही कर पा रहे है जो सारे घरो के लिए थी सारे परिवारो के लिए थी सारे प्रदेशो के लिए थी सारे देश के लिए थी सभी धर्मो के लिए थी सभी जातियो के लिए थी अगर किसी के लिए नही थी तो वह भगत सिह ,राजगुरू और सुखदेव के लिए नही थी जिन्होने हंसते हुये फॉसी के फन्दे को गले में डाल लिया इस संकल्प के साथ कि तेरा वैभव अमर रहे मॉ हम दिन चार रहे न रहे ,जन्म का विवाह केवल मृत्यु के साथ होता है यह सभी जानते है किन्तु जिन्होने घुट-घुट कर मरने का संकल्प लिया है वो शायद इन शहीदो की शहादत का मूल्यांकन नही कर पायेगे <br />
आज इस देश का नौजवान सिमटता जा रहा है अपने और पराये के बीच अपने का दायरा उसने बहुत संकीर्ण कर लिया है शेष सब पराये हो गये है यह देश भी और इस देश के लोग भी ,कोन देगा शहीदे आजम को श्रद्धान्जली कोरे भाषणो से क्या इन कर्म योगियो की आत्मा को शान्ति मिलेगी, ></div><div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-66901229553533509162009-03-13T16:01:00.000-04:002011-12-06T07:24:23.508-05:00संदेशअपने प्रारब्ध के लिए स्वयं मनुष्य उत्तर दायी है<div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-60802627229645117822009-03-11T13:02:00.000-04:002011-12-06T07:24:23.509-05:00बडे भाग मानुष तन पावाआत्मा की अनन्त योनियो में एक है मानव योनि ,यह योनी देवताओ के लिए भी दुर्लभ बताइ गयी है ा इसकी सही व्याख्या का अधिकार एवं योग्यकता तो केवल अनन्त कोटी ब्रह्रामाण्ड नायक मे ही निहित है,लेकिन स्वअन्त; सुखाय की भावना से व परब्रह्रा के आर्शिवाद से इसकी टुटी-फुटी व्याख्या आपके चिन्त न के लिए प्रस्तुत है , आर्शीवाद की अपेक्षा में------------------- समस्त जड –चेतन मे निहित सत्ता का नाम आत्मा है, जो परमात्मा के अविनाशी अंग के रूप मे सभी भूत प्राणियो मे निहित रहती है,जो अनन्त शक्तियो का स्रोत समझी जाती है इस शक्ति के संचालन के लिए जिन संचालक यन्त्रो की आवश्यकता होती है उन यन्त्रो मे सबसे सामर्थ्यवान यंत्र मानव शरीर है इसमें विवेक वुद्धि का जो अपार सागर निहित है, वह किसी भी अन्य योनि के भाग्य में नही लिखा है, मानव शरीर समस्ति प्रत्यक्ष घटनाओ का स्वत. दृष्टा होता है अन्य योनियॉ इस भॉति दृष्टा नही होती जिस प्रकार मानव धटनाओ को देखकर उसका मंथन कर लेता है वैसा किसी अन्य योनि में सम्भव नही है ामानव को अभ्यास की एक ऐसी विरासत प्राप्त है जिसक माध्यम से मानव अजान-से जान ,मूर्खसे विद्धान अबोध से बोध अवस्था को प्राप्त होता है,मानव जीवन का सबसे बडा साध्य उस अजात को जात करना है ,जिसके जान मा्त्र से उसे न तो किसी वस्तु की अपेक्षा रहती है न ही उसके लिए कोइ वस्तु दुर्लभ ही रहती है ा नि. सन्दे ह यह संसार नस्वर है किन्तु यह मानव का कुरूक्षेत्र है यहॉ की भैतिक वस्तुये मानव के साथ नही जाती है किन्तु कर्मो के साथ निहित अभैातिक अनुराग उसके साथ जाता है अविश्वासनीय रूप से उस अनुराग केा त्या्गने की व्यवस्था् भी मानव को उपलव्ध इसी जगत मे होती है किन्तु कोइ विरला मानव तन ही उसका उपयोग कर पाता है अधिकांश तो और भी कठोरता से उसमे लिप्त हो जाते है ा<br /> मानव शरीर सर्वोच्च साधन है इसमे अवसर की अधिकता है,कर्म माध्यम है, इस भव सागर से पार जाने के लिए अन्य् योनियो को यह सौभाग्य कहॉ ा<br />मानव शरीर सर्वोच्च् साधन है साधन दो है यदि तुम शरीर के अन्दर उस आत्मा की खोज करना चाहते हो तो यह जान मार्ग हे,यदि वाहर खोज करना चाहते हो तो यह भक्ति मार्ग है<br />इसमे अवसर की अधिकता है संसार के आरोह अवरोह ही इसके अवसर है<br />कर्म माध्यकम है, आरोह अवरोहो पर विजय पाने की कला ही तुम्हारा कम्र है,वह विजय जो नये आरोह अवरोहो को न जन्म दे इति<div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-86928416020285158512009-03-07T11:34:00.000-05:002011-12-06T07:24:23.510-05:00सत्यसत्य को इश्वर माना जाता हैं,फिर भी सत्य का अन्वेषण काने वाला परेशान होता है,जब कि असत्य के मार्ग पर चलने वाले की राह आसान प्रतीत होती है,इस लिए सत्यान्वेषियो की तुलना में असत्य का अनुसरण करने वालो की संख्या अधिक दिखाइ देती है ऐसा क्यो होता हैं ।यह सदा से मनुष्य के विचार का विषय रहा हैा इस प्रश्न के उत्तर को जानने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि मनुष्य के संचय का लक्ष्य क्या है ,निश्चित रूप से शक्ति ,एक सांसारिक छण भ्ागुर शक्ति होती है तो असत्य के मार्ग से प्रप्त होती है दूसरी आध्यातमिक वास्तविक शक्ति ासांसारिक शक्ति जहॉ उसे इस माया लोक में उलझाती है वही आध्यात्मिक शक्ति उसके मुक्ती का मार्ग प्रशस्त करती है ा आध्यात्मिक शक्ति अमूल्य धरोहर है जिसे बडी तपस्या से प्राप्त किया जाता है इसे सत्य के पथ के अनुसरण द्धारा ही प्राप्त किया ता सकता है इससे जगत नियन्ता का साक्षात्कार एवं स्वयं के अस्तीत्व का बोध होता है यह कभी न मिटने वाली वह थाती है जो युग युगान्तर तक आपको मार्गदर्शन कराती है ा<div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2432327901295794327.post-80415761655702648492009-03-04T13:22:00.000-05:002011-12-06T05:51:24.883-05:00स्वर्ग-नरकएक फकीर था जीवन भर उसने पुण्य का कार्य किया ,जाने अनजाने उससे एक अपराध हो गया ,मत्यु के समय यमदूत आये उन्होने फकीर के सामने प्रस्ताव रखा कि अपनी इच्छानुसार वह पहले स्वर्ग या नरक का चयन कर सकता हैं ा फकीर ने नरक मॉगा यमदुत उसे नर्क में लेकर चले गये ,नर्क में उसने देखा कि मनुष्येा के हाथ बीस-बीस मीटर लम्बे हैं सब दुवले पतले व दुखी थे,खाने का समय था सबके सामने अच्छे-अच्छे भोजन रख दिये गये लेकिन किसी का हाथ अपने मुह तक नही पहुच पा रहा था थेाडे प्रयास के बाद उन लोगो ने दूसरे के सामने रखा भोजन उठा कर फेकना प्रारम्भर कर दिया और सभी भूखे ही रह गये ं फकीर के नर्क का समय समाप्त हो गया दूत उसे स्वर्ग मे ले गये वहॉं भी लोगो के हाथ उतने ही लम्बे थे लेकिन सभी स्वथ्य एवं प्रस्रन थे फकीर को वडा आश्चर्य हुआ ा खाने का समय यहॅा भी आया उसने देखा यहॉ लोग अपने लम्बे हाथो से दूसरे को भोजन करा रहे थे थोडी देर मे सबने भोजन कर लिया ा फकीर को स्वरर्ग -नर्क का आशय समझ में आ गया था ा<div class="blogger-post-footer">जो हमने देखा'''''''''''''''वो तुम भी जानो</div>मनोज कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/12162026965249300749noreply@blogger.com1