6 अक्तूबर 2013
31 जनवरी 2012
हमारे प्रथम प्रधानमंत्री
बहुत से लोगों का विचार है कि नेहरू ने अन्य नेताओं की तुलना में भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत कम योगदान दिया था। फिर भी गांधीजी ने उन्हे भारत का प्रथम प्रधानमंत्री बना दिया। स्वतंत्रता के बाद कई दशकों तक भारतीय लोकतंत्र में सत्ता के सूत्रधारों ने प्रकारांतर से देश में राजतंत्र चलाया, विचारधारा के स्थान पर व्यक्ति पूजा को प्रतिष्ठित किया और तथाकथित लोकप्रियता के प्रभामंडल से आवेष्टित रह लोकहित की पूर्णत: उपेक्षा की। अपनी अहम्मन्यता को बाह्य शिष्टता के आवरण में छिपाकर हितकर परामर्श देने वालों की बात अनसुनी कर दी तथा अपने आसपास चाटुकारों की सभाएं जोड़कर स्वयं को देवदूत घोषित करवाते रहे और स्वयं अपनी छवि पर मुग्ध होते रहे।
भारत की बहुत सी समस्याओं के लिये नेहरू को जिम्मेदार माना जाता है। इन समस्याओं में से कुछ हैं:
भारत की बहुत सी समस्याओं के लिये नेहरू को जिम्मेदार माना जाता है। इन समस्याओं में से कुछ हैं:
- लेडी माउंटबेटन के साथ नजदीकी सम्बन्ध
- कश्मीर की समस्या
- चीन द्वारा भारत पर हमला
- भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिये चीन का समर्थन
- भारतीय राजनीति में वंशवाद को बढावा देना
- भारतीय राजनीति में कुलीनतंत्र को बनाये रखना
- गांधीवादी अर्थव्यवस्था की हत्या एवं ग्रामीण भारत की अनदेखी
- सुभाषचन्द्र बोस का ठीक से पता नहीं लगाना
- भारतीय इतिहास लेखन में गैर-कांग्रेसी तत्वों की अवहेलना
- सन १९६५ के बाद भी भारत पर अंग्रेजी लादे रखने का विधेयक संसद में लाना और उसे पारित कराना : 3 जुलाई, 1962 को बिशनचंद्र सेठ द्वारा पंडित जवाहरलाल नेहरू को लिखे गये पत्र का एक हिस्सा निम्नवत है-
- राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति सरकार की गलत नीति के कारण देशवासियों में रोष व्याप्त होना स्वाभाविक है। विदेशी साम्राज्यवाद की प्रतीक अंग्रेजी को लादे रखने के लिए नया विधेयक संसद में न लाइये अन्यथा देश की एकता के लिए खतरा पैदा हो जाएगा।...यदि आपने अंग्रेजी को 1965 के बाद भी चालू रखने के लिए नवीन विधान लाने का प्रयास किया तो उसका परिणाम अच्छा नहीं होगा।
- डा. राममनोहर लोहिया ने संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के ऐशो आराम पर रोजाना होने वाले 25 हजार रुपये के खर्च को प्रमुखता से उठाया था। उनका कहना था कि भारत की जनता जहां साढ़े तीन आना पर जीवन यापन कर रही है उसी देश का प्रधानमंत्री इतना भारी भरकम खर्च कैसे कर सकता है। इसे 'तीन आने की बहस' कहते हैं। लोहिया जी ने सरकारी तंत्र के मुगलिया ठाठ-बाट की निंदा इतने कड़े शब्दों में की थी कि सारा तंत्र भर्राने लगा था।
- लोहिया ने अति प्रशंसित गुट-निरपेक्षता की विदेश नीति पर प्रश्नचिह्न लगाए थे और नेहरूजी की 'विश्वयारी' पर तीखे व्यंग्य बाण चलाए थे।
- सन् 1955 में चीन द्वारा किए गए आक्रमण की बात देश से छिपाकर रखी गई। 13 नवम्बर, 1962 को श्री विशनचन्द्र सेठ ने कहा था-
- "सन् 1951 में तिब्बत का दान हुआ और सन् 1955 में भारत पर चीन का हमला हुआ। एक तरफ भारत पर चीन का हमला होता है और दूसरी तरफ चीन के प्रधानमंत्री इस देश में पधारते हैं। सन् 1959 में यह बात लोकसभा में बतलाई जाती है कि चीन का हमला सन् 1955 में हुआ था। मैं बड़े आदर के साथ यह प्रश्न करना चाहता हूं कि इस प्रजातंत्र का अर्थ क्या है? क्या कारण था कि देश को चार वर्षों तक अंधेरे में रखा गया? अगर सन् 1959 की बजाय चार साल पहले यानी सन् 1955 में ही आदरणीय प्रधानमंत्री ने देश को बता दिया होता कि चीन ने हम पर हमला किया था तो देश में "हिन्दी चीनी भाई भाई" का नारा न लगता। अगर जनता को इस बात की जानकारी होती तो देश में उस आदमी के लिए, जिसने हमारे देश पर हमला किया है, किसी प्रकार के स्वागत का उत्साह न होता।"
- साभार.
25 दिसंबर 2011
लहसुन
लहसुन से आप सभी परिचित हैं,समानय रूप से भोजन में हम सभी इसका प्रयोग करते हैं इसका एक प्रयोग बडा ही गुडकारी हैं-2-5 कली लहसुन दिन में एक बार कभी भी देशी घी में तलकर कलियॉ चबाकर खा ले तथा घी उपर से पी ले-इससे सभी वात कष्ट,आमवात , सन्धिवात,जोडो के कष्ट,सुस्ती,गैस का कष्ट,यौनांग की दुर्वलता,शिथिलता,कमजोरी आदि व्याधियॉ दुर होगी ।
योग एक परिचय
''योग'' शब्द संस्कत के ''युज'' धतु से बना हैं, जिसका अर्थ है-बॉधना,जोडना, मिलाना, युक्तकरना ध्यान को नियंत्रित करना केन्द्रित करना,उपयोग में लाना या लगाना । ''योग'' का अर्थ संयोग या मिलन भी माना जाता हैं । अपनी इच्छा को भगवान की इच्छा में संयुक्त कर देना ही सच्चा योग हैं । अर्थात मन वाणी कर्म से र्इश्वर में विलीन होना ही योग हैं, जिसमें आपकी समस्त क्रियाये अनुशासित होती हैं, व ईश्वरीय निर्देशानुसार संचालित हो रही है जीवन में ऐसी सम्यावस्था को प्रस्थापित करने की क्रिया को योग कहते हैं ।
भगवतगीता में श्रीक़ष्ण ने कहा है-'' जब मन, बु्द्धि ओर अहंकार वश में होते हैं और वो चंचल इच्छाओ से रहित होते है-जिससे वो आत्म अवस्थित रह सके, तब पुरूष युक्त होता हैं।जहॉ वयु नही बहती, वहॅा दीपक कॉपता नही हैं ।
योग का सही अर्थ है -आनन्द,सुख,वेदना,द:ख के संसर्ग से मुक्ति ।
श्रीमदभागवत गीता में भगवान ने कर्मयोग के सिद्धान्त पर आधरित योग की एक अनय परिभाषा भी दी है ''तुम्हारा कर्म पर ही अधिकार है, फल पर नही '' अर्थात जो तुम्हारा कर्म हो
भगवतगीता में श्रीक़ष्ण ने कहा है-'' जब मन, बु्द्धि ओर अहंकार वश में होते हैं और वो चंचल इच्छाओ से रहित होते है-जिससे वो आत्म अवस्थित रह सके, तब पुरूष युक्त होता हैं।जहॉ वयु नही बहती, वहॅा दीपक कॉपता नही हैं ।
योग का सही अर्थ है -आनन्द,सुख,वेदना,द:ख के संसर्ग से मुक्ति ।
श्रीमदभागवत गीता में भगवान ने कर्मयोग के सिद्धान्त पर आधरित योग की एक अनय परिभाषा भी दी है ''तुम्हारा कर्म पर ही अधिकार है, फल पर नही '' अर्थात जो तुम्हारा कर्म हो
20 दिसंबर 2011
दलीय लोकतंत्र-2
किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलो का विशेष् महत्व होता हैं राजनीतिक दललोकतांत्रिक व्यवस्था मे रीढ की हड़डी की तरह होते है, यह जितने ही लोकतांत्रिक होगे देश का लोकतंत्र उतना ही मतबूत एवं दीर्घजीवी होगा ।
अपने देश भारत में अभी भी राजनैतिक दलो का लोकतं9 अपने प्रारंभिक अवस्था में है, इसके पीछे मुख्य श्रेय काग्रेस पार्टी को जाता हैं,जिसने स्वतंत्रता प्राप्ति के वाद से ही अपने दल से लोकतंत्र को निकाल के फेक दिया, इसके विकास में सबसे अधिक श्रेय यदि किसी पक्ष में जाता है वह भाजपा के पक्ष में हैं वामपंथियो में भी लोकतात्रिक प्रकया है किन्तु एक रूढि वादी आवरण ये घिरी हैं,जहॉ तक क्षेत्रिय पार्टीयो का सवाल है तो वो लांकतंत्र से मीलो दूर हैं ओर उनकी अतिविणियां प्राइवेट कम्पनियो की तरह है , जैसे कांग्रेस के अन्दर है ,वो राजनीति को व्यवसाय की तरह करती हैं अत: उनकी सेरचना भी व्यवसायिक कम्पनी की तरह होती हैं ।
भारतीय परिदश्य में यहाॅ के दलो में लोकतंत्र का आना एक दूर की कौडी हैं,किन्तु प्रारम्भ से ही यहॉ दलीय लोकतंत्र की व्यवस्था भी उसी तरह करनी चाहिये थी जिस तरह निर्वाचन के लिए चुनाव आयोग की व्यवस्था की गयी है,दलीय संगठन के चुनाव दलो के अपने कोष से एवं आम चुनाव सरकारी धन से कराये जाने चाहिये, दल में सामुहिक नेतत्व का विकास हो एवं दल की पहचान व्यक्ति के स्थान पर सिद्धान्तो के आधार पर होनी चाहिये, इन सब के लिए यह जरूरी है कि लोतात्रिक परंपराओ की स्थापना एवं उसका कठोरता से अनुपालन सुनिष्चित किया जाये,तब तक भरतीय लोकतंत्र का स्वर्ण युग नही आयेगा ।
अपने देश भारत में अभी भी राजनैतिक दलो का लोकतं9 अपने प्रारंभिक अवस्था में है, इसके पीछे मुख्य श्रेय काग्रेस पार्टी को जाता हैं,जिसने स्वतंत्रता प्राप्ति के वाद से ही अपने दल से लोकतंत्र को निकाल के फेक दिया, इसके विकास में सबसे अधिक श्रेय यदि किसी पक्ष में जाता है वह भाजपा के पक्ष में हैं वामपंथियो में भी लोकतात्रिक प्रकया है किन्तु एक रूढि वादी आवरण ये घिरी हैं,जहॉ तक क्षेत्रिय पार्टीयो का सवाल है तो वो लांकतंत्र से मीलो दूर हैं ओर उनकी अतिविणियां प्राइवेट कम्पनियो की तरह है , जैसे कांग्रेस के अन्दर है ,वो राजनीति को व्यवसाय की तरह करती हैं अत: उनकी सेरचना भी व्यवसायिक कम्पनी की तरह होती हैं ।
भारतीय परिदश्य में यहाॅ के दलो में लोकतंत्र का आना एक दूर की कौडी हैं,किन्तु प्रारम्भ से ही यहॉ दलीय लोकतंत्र की व्यवस्था भी उसी तरह करनी चाहिये थी जिस तरह निर्वाचन के लिए चुनाव आयोग की व्यवस्था की गयी है,दलीय संगठन के चुनाव दलो के अपने कोष से एवं आम चुनाव सरकारी धन से कराये जाने चाहिये, दल में सामुहिक नेतत्व का विकास हो एवं दल की पहचान व्यक्ति के स्थान पर सिद्धान्तो के आधार पर होनी चाहिये, इन सब के लिए यह जरूरी है कि लोतात्रिक परंपराओ की स्थापना एवं उसका कठोरता से अनुपालन सुनिष्चित किया जाये,तब तक भरतीय लोकतंत्र का स्वर्ण युग नही आयेगा ।
13 दिसंबर 2011
दलीय लोकतंत्र 1
आज का लोक तंत्र अब्राहम लिकन की उस युक्ति पर आधारित है जिसमें आपने लोकतंत्र की परिभाष करते हुये कहा था कि लोकतंत्र जनता से जनता द्वारा और जनता के लिए संचालित किया जाता हैं ।लेकिन प्रक्रियागत रूप से इस परिभाषा को लागू करने के रास्ते भिन्न -भिन्न हैं अब के देशइतनेछोटे नही रहे कि आम जनता द्वारा संचालित प्रत्यक्ष लोकतंत्र का पालन किया जा सके वरन इसके स्थान पर प्रतिनिधात्मक लोकतंत्र का आश्रय लिया गया हैं।
भारत एक नवीन लोकतांत्रिक देश हैं,जहॉ पूर्व से अन्य देशो में प्रचलित लोकतांत्रिक प्रणालियो का संकलन करके एक सेविधान के माध्यम से लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना की गयी ।
हमने सिद्धान्त तो विभिन्न देशो की शासन प्रणालियो से ग्रहण कर लिया लेकिन व्यवहार के रूप में वो परिपक्वता नही ला सके परिणाम स्वरूप हमारा लोकतंत्र सैद्धान्तिक अणिक हो गया एवं व्यवहारिक कम ।
सिद्धान्त मे हमने लोकतांत्रिक बहु दलीय प्रणली को अपनाया है किन्तु हमारे देश के राजनीतिक दलो की आन्तरिक प्रणाली प्रइवेट कम्पनियो की तरह है जो व्यक्ति पूजक ,अल्पायु व सिद्धान्त विहिन होती हैं,यही से हमारा लोकतंत्र प्रारंभ होता है,यह दल नितान्त अलोकतांत्रिक ढंग से यह निर्धारित करते है कि उनकी तरफ से कौन सा व्यक्ति औपचारिक रूप से लोकतंत्र में जनता का प्रतिनिधि होगा उनकी निष्ठा जनता से ज्यादा अपने दल के प्रति होती है कहने को तो जन प्रतिनिधि होते है लेकिप वास्तव में वह दल प्रतिनिध होते हैउनके सारे संसदीय आचरण दलगत भवना से पूर्ण होते है,ये संसद में जनता की इच्छा के बजाय अपने दल की इच्छा का ही प्रतिनिधित्व करते है उस दल की जिसकी संरचना ही प्रइवेट कम्पनी की तरह की है यानि एक व्यक्ति की इच्छा का प्रतिनिधित्व यही आकर लोक समाप्त हो जाता है और केवल तंत्र ही शेष रह जाता है
आवश्यकता है किसी देश में मजबूत लोकतंत्र की स्थापना के लिए वहाॅ काम करने वाले दलो में लांकतंत्र का विकास किया जाये दल के प्रारंभिक सदस्य से लेकर राष्टीय अध्यक्ष तक एक कठोर संवैधानिक व्यवस्था के तहत आबद़ध होने चाहिये ।
भारत एक नवीन लोकतांत्रिक देश हैं,जहॉ पूर्व से अन्य देशो में प्रचलित लोकतांत्रिक प्रणालियो का संकलन करके एक सेविधान के माध्यम से लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना की गयी ।
हमने सिद्धान्त तो विभिन्न देशो की शासन प्रणालियो से ग्रहण कर लिया लेकिन व्यवहार के रूप में वो परिपक्वता नही ला सके परिणाम स्वरूप हमारा लोकतंत्र सैद्धान्तिक अणिक हो गया एवं व्यवहारिक कम ।
सिद्धान्त मे हमने लोकतांत्रिक बहु दलीय प्रणली को अपनाया है किन्तु हमारे देश के राजनीतिक दलो की आन्तरिक प्रणाली प्रइवेट कम्पनियो की तरह है जो व्यक्ति पूजक ,अल्पायु व सिद्धान्त विहिन होती हैं,यही से हमारा लोकतंत्र प्रारंभ होता है,यह दल नितान्त अलोकतांत्रिक ढंग से यह निर्धारित करते है कि उनकी तरफ से कौन सा व्यक्ति औपचारिक रूप से लोकतंत्र में जनता का प्रतिनिधि होगा उनकी निष्ठा जनता से ज्यादा अपने दल के प्रति होती है कहने को तो जन प्रतिनिधि होते है लेकिप वास्तव में वह दल प्रतिनिध होते हैउनके सारे संसदीय आचरण दलगत भवना से पूर्ण होते है,ये संसद में जनता की इच्छा के बजाय अपने दल की इच्छा का ही प्रतिनिधित्व करते है उस दल की जिसकी संरचना ही प्रइवेट कम्पनी की तरह की है यानि एक व्यक्ति की इच्छा का प्रतिनिधित्व यही आकर लोक समाप्त हो जाता है और केवल तंत्र ही शेष रह जाता है
आवश्यकता है किसी देश में मजबूत लोकतंत्र की स्थापना के लिए वहाॅ काम करने वाले दलो में लांकतंत्र का विकास किया जाये दल के प्रारंभिक सदस्य से लेकर राष्टीय अध्यक्ष तक एक कठोर संवैधानिक व्यवस्था के तहत आबद़ध होने चाहिये ।
मंजिल
ये शाम यू ही ढलेगी
ये रात यू ही चलेगी
दिन का उजियाला आयेगा
जीवन का फसाना गायेगा
ये पहिया यूही घूमेगा
वक्त यू ही झूमेगा
तुम चल सकते हो तो चल जाओ
तुम ढल सकते हो तो ढल जाओ
इतिहास यही दुहरायेगा
अंजाम वही बतलायेगा
है यही फसाना दुनिया का
अंजाम पुराना दुनिया का
जो वक्त के आगे रहता है
अंजाम वही बस सहता है
इतिहास वही दुहराता है
मंजिल पर पहुच जो पाता है
12 दिसंबर 2011
वेदना
वो दिल भी क्या जो तुमसे मिलने की दुआ न करे
मै तुमको छोउ के जिन्दा रहू खुदा न करे ।
रहेगा साथ तेरा प्यार जिनदगी बनकर
ये बात और मेंरी जिन्दगी वफा न करे
फलक पे आये सितारे तेरी सुरत बन के
ये रात बीत न जाये कोर्इ दुआ न करे
जमाना देख चुका है परख तुका है हमे
यतीम जान के काबे में इल्तजा न करे
हॅु खुसनसीब जो पाई है जुदाई तेरी
हमारी याद कभी तुमको बमजदा न करे
मै तुमको छोउ के जिन्दा रहू खुदा न करे ।
रहेगा साथ तेरा प्यार जिनदगी बनकर
ये बात और मेंरी जिन्दगी वफा न करे
फलक पे आये सितारे तेरी सुरत बन के
ये रात बीत न जाये कोर्इ दुआ न करे
जमाना देख चुका है परख तुका है हमे
यतीम जान के काबे में इल्तजा न करे
हॅु खुसनसीब जो पाई है जुदाई तेरी
हमारी याद कभी तुमको बमजदा न करे