निजी एवं सर्वजनिक जीवन के भ्रष्टाचार से सभीपरेशान हैं सब चाहते है कि इससे मुक्ती मिले लेकिन यह विचारणीय है कि क्या वास्तव में वह इतने ही प्रतिबदद्यध भी है कि उनके जीवन मे भ्रर्ष्टाचार से हलचल न मचे हम स्वये भ्रष्टचार को प्रश्रय दे और यह अपेक्षा भी रखे कि हमारे जीवन मे भ्रष्टाचार कोइ बाधा न पैदा करे आज बडी विचित्र स्थिति है सभी लोग भ्रष्ट तरीके से अपनी स्वार्थ सिद्धी तो चाहते है लेकिन साथ ही यह भी चाहते है कि दूसरा उनके साथ सद् आचरण करे इस बाजारवाद के दौर मे जब हर व्यक्ति एक दूसरे से गला काट प्रतियोगिता में लगा है तो फिर किससे अपेक्षा कीजा रही है कि वह सद् आचरण को अपनायेगा क्या किताबो में लिखे वो निर्जिव अच्छर हमे सदाचार का पाठ पढाने के लिए पर्याप्त है क्या सदाचार के लिए इकलौते वही जिम्मेदार है जो स्वये निर्जिव है हम क्यो नही सोचते
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