12 अक्तूबर 2011

भ्रष्‍टाचार

निजी एवं सर्वजनिक जीवन के भ्रष्‍टाचार से सभीपरेशान हैं सब चाहते है कि इससे मुक्‍ती मिले लेकिन यह विचारणीय है कि क्‍या वास्‍तव में वह इतने ही प्रतिबदद्यध भी है कि उनके जीवन मे भ्रर्ष्टाचार से हलचल न मचे हम स्‍वये भ्रष्‍टचार को प्रश्रय दे और यह अपेक्षा भी रखे कि हमारे जीवन मे भ्रष्‍टाचार कोइ बाधा न पैदा करे आज बडी विचित्र स्‍थिति है सभी लोग भ्रष्‍ट तरीके से अपनी स्‍वार्थ सिद्धी तो चाहते है लेकिन साथ ही यह भी चाहते है कि दूसरा उनके साथ सद् आचरण करे इस बाजारवाद के दौर मे जब हर व्‍यक्ति एक दूसरे से गला काट प्रतियोगिता में लगा है तो फिर किससे अपेक्षा कीजा रही है कि वह सद् आचरण को अपनायेगा क्‍या किताबो में लिखे वो निर्जिव अच्‍छर हमे सदाचार का पाठ पढाने के लिए पर्याप्‍त है क्‍या सदाचार के लिए इकलौते वही जिम्‍मेदार है जो स्‍वये निर्जिव है हम क्‍यो नही सोचते

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