आत्मा की अनन्त योनियो में एक है मानव योनि ,यह योनी देवताओ के लिए भी दुर्लभ बताइ गयी है ा इसकी सही व्याख्या का अधिकार एवं योग्यकता तो केवल अनन्त कोटी ब्रह्रामाण्ड नायक मे ही निहित है,लेकिन स्वअन्त; सुखाय की भावना से व परब्रह्रा के आर्शिवाद से इसकी टुटी-फुटी व्याख्या आपके चिन्त न के लिए प्रस्तुत है , आर्शीवाद की अपेक्षा में------------------- समस्त जड –चेतन मे निहित सत्ता का नाम आत्मा है, जो परमात्मा के अविनाशी अंग के रूप मे सभी भूत प्राणियो मे निहित रहती है,जो अनन्त शक्तियो का स्रोत समझी जाती है इस शक्ति के संचालन के लिए जिन संचालक यन्त्रो की आवश्यकता होती है उन यन्त्रो मे सबसे सामर्थ्यवान यंत्र मानव शरीर है इसमें विवेक वुद्धि का जो अपार सागर निहित है, वह किसी भी अन्य योनि के भाग्य में नही लिखा है, मानव शरीर समस्ति प्रत्यक्ष घटनाओ का स्वत. दृष्टा होता है अन्य योनियॉ इस भॉति दृष्टा नही होती जिस प्रकार मानव धटनाओ को देखकर उसका मंथन कर लेता है वैसा किसी अन्य योनि में सम्भव नही है ामानव को अभ्यास की एक ऐसी विरासत प्राप्त है जिसक माध्यम से मानव अजान-से जान ,मूर्खसे विद्धान अबोध से बोध अवस्था को प्राप्त होता है,मानव जीवन का सबसे बडा साध्य उस अजात को जात करना है ,जिसके जान मा्त्र से उसे न तो किसी वस्तु की अपेक्षा रहती है न ही उसके लिए कोइ वस्तु दुर्लभ ही रहती है ा नि. सन्दे ह यह संसार नस्वर है किन्तु यह मानव का कुरूक्षेत्र है यहॉ की भैतिक वस्तुये मानव के साथ नही जाती है किन्तु कर्मो के साथ निहित अभैातिक अनुराग उसके साथ जाता है अविश्वासनीय रूप से उस अनुराग केा त्या्गने की व्यवस्था् भी मानव को उपलव्ध इसी जगत मे होती है किन्तु कोइ विरला मानव तन ही उसका उपयोग कर पाता है अधिकांश तो और भी कठोरता से उसमे लिप्त हो जाते है ा
मानव शरीर सर्वोच्च साधन है इसमे अवसर की अधिकता है,कर्म माध्यम है, इस भव सागर से पार जाने के लिए अन्य् योनियो को यह सौभाग्य कहॉ ा
मानव शरीर सर्वोच्च् साधन है साधन दो है यदि तुम शरीर के अन्दर उस आत्मा की खोज करना चाहते हो तो यह जान मार्ग हे,यदि वाहर खोज करना चाहते हो तो यह भक्ति मार्ग है
इसमे अवसर की अधिकता है संसार के आरोह अवरोह ही इसके अवसर है
कर्म माध्यकम है, आरोह अवरोहो पर विजय पाने की कला ही तुम्हारा कम्र है,वह विजय जो नये आरोह अवरोहो को न जन्म दे इति
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