25 दिसंबर 2011

योग एक परिचय

''योग'' शब्‍द संस्‍कत के ''युज'' धतु से बना हैं, जिसका अर्थ है-बॉधना,जोडना, मिलाना, युक्‍तकरना  ध्‍यान को नियंत्रित करना केन्द्रित करना,उपयोग में लाना या लगाना । ''योग'' का अर्थ संयोग या मिलन भी माना जाता हैं । अपनी इच्‍छा को भगवान की इच्‍छा में संयुक्‍त कर देना ही सच्‍चा योग हैं । अर्थात मन वाणी कर्म से र्इश्‍वर में विलीन होना ही योग हैं, जिसमें आपकी समस्‍त क्रियाये अनुशासित होती हैं, व ईश्‍वरीय निर्देशानुसार संचालित हो रही है जीवन में ऐसी सम्‍यावस्‍था को प्रस्‍थापित करने की क्रिया को योग कहते हैं ।
भगवतगीता में श्रीक़ष्‍ण ने कहा है-'' जब मन, बु्द्धि ओर अहंकार वश में होते हैं और वो चंचल इच्‍छाओ से रहित होते है-जिससे वो आत्‍म अवस्थित रह सके, तब पुरूष युक्‍त होता हैं।जहॉ वयु नही बहती, वहॅा दीपक कॉपता नही हैं ।
योग का सही अर्थ है -आनन्‍द,सुख,वेदना,द:ख के संसर्ग से मुक्ति ।
श्रीमदभागवत गीता में भगवान ने कर्मयोग के सिद्धान्‍त पर आधरित योग की एक अनय परिभाषा भी दी है ''तुम्‍हारा कर्म पर ही अधिकार है, फल पर नही '' अर्थात जो तुम्‍हारा कर्म हो

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