किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलो का विशेष् महत्व होता हैं राजनीतिक दललोकतांत्रिक व्यवस्था मे रीढ की हड़डी की तरह होते है, यह जितने ही लोकतांत्रिक होगे देश का लोकतंत्र उतना ही मतबूत एवं दीर्घजीवी होगा ।
अपने देश भारत में अभी भी राजनैतिक दलो का लोकतं9 अपने प्रारंभिक अवस्था में है, इसके पीछे मुख्य श्रेय काग्रेस पार्टी को जाता हैं,जिसने स्वतंत्रता प्राप्ति के वाद से ही अपने दल से लोकतंत्र को निकाल के फेक दिया, इसके विकास में सबसे अधिक श्रेय यदि किसी पक्ष में जाता है वह भाजपा के पक्ष में हैं वामपंथियो में भी लोकतात्रिक प्रकया है किन्तु एक रूढि वादी आवरण ये घिरी हैं,जहॉ तक क्षेत्रिय पार्टीयो का सवाल है तो वो लांकतंत्र से मीलो दूर हैं ओर उनकी अतिविणियां प्राइवेट कम्पनियो की तरह है , जैसे कांग्रेस के अन्दर है ,वो राजनीति को व्यवसाय की तरह करती हैं अत: उनकी सेरचना भी व्यवसायिक कम्पनी की तरह होती हैं ।
भारतीय परिदश्य में यहाॅ के दलो में लोकतंत्र का आना एक दूर की कौडी हैं,किन्तु प्रारम्भ से ही यहॉ दलीय लोकतंत्र की व्यवस्था भी उसी तरह करनी चाहिये थी जिस तरह निर्वाचन के लिए चुनाव आयोग की व्यवस्था की गयी है,दलीय संगठन के चुनाव दलो के अपने कोष से एवं आम चुनाव सरकारी धन से कराये जाने चाहिये, दल में सामुहिक नेतत्व का विकास हो एवं दल की पहचान व्यक्ति के स्थान पर सिद्धान्तो के आधार पर होनी चाहिये, इन सब के लिए यह जरूरी है कि लोतात्रिक परंपराओ की स्थापना एवं उसका कठोरता से अनुपालन सुनिष्चित किया जाये,तब तक भरतीय लोकतंत्र का स्वर्ण युग नही आयेगा ।
अपने देश भारत में अभी भी राजनैतिक दलो का लोकतं9 अपने प्रारंभिक अवस्था में है, इसके पीछे मुख्य श्रेय काग्रेस पार्टी को जाता हैं,जिसने स्वतंत्रता प्राप्ति के वाद से ही अपने दल से लोकतंत्र को निकाल के फेक दिया, इसके विकास में सबसे अधिक श्रेय यदि किसी पक्ष में जाता है वह भाजपा के पक्ष में हैं वामपंथियो में भी लोकतात्रिक प्रकया है किन्तु एक रूढि वादी आवरण ये घिरी हैं,जहॉ तक क्षेत्रिय पार्टीयो का सवाल है तो वो लांकतंत्र से मीलो दूर हैं ओर उनकी अतिविणियां प्राइवेट कम्पनियो की तरह है , जैसे कांग्रेस के अन्दर है ,वो राजनीति को व्यवसाय की तरह करती हैं अत: उनकी सेरचना भी व्यवसायिक कम्पनी की तरह होती हैं ।
भारतीय परिदश्य में यहाॅ के दलो में लोकतंत्र का आना एक दूर की कौडी हैं,किन्तु प्रारम्भ से ही यहॉ दलीय लोकतंत्र की व्यवस्था भी उसी तरह करनी चाहिये थी जिस तरह निर्वाचन के लिए चुनाव आयोग की व्यवस्था की गयी है,दलीय संगठन के चुनाव दलो के अपने कोष से एवं आम चुनाव सरकारी धन से कराये जाने चाहिये, दल में सामुहिक नेतत्व का विकास हो एवं दल की पहचान व्यक्ति के स्थान पर सिद्धान्तो के आधार पर होनी चाहिये, इन सब के लिए यह जरूरी है कि लोतात्रिक परंपराओ की स्थापना एवं उसका कठोरता से अनुपालन सुनिष्चित किया जाये,तब तक भरतीय लोकतंत्र का स्वर्ण युग नही आयेगा ।
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