
भारत एक नवीन लोकतांत्रिक देश हैं,जहॉ पूर्व से अन्य देशो में प्रचलित लोकतांत्रिक प्रणालियो का संकलन करके एक सेविधान के माध्यम से लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना की गयी ।
हमने सिद्धान्त तो विभिन्न देशो की शासन प्रणालियो से ग्रहण कर लिया लेकिन व्यवहार के रूप में वो परिपक्वता नही ला सके परिणाम स्वरूप हमारा लोकतंत्र सैद्धान्तिक अणिक हो गया एवं व्यवहारिक कम ।
सिद्धान्त मे हमने लोकतांत्रिक बहु दलीय प्रणली को अपनाया है किन्तु हमारे देश के राजनीतिक दलो की आन्तरिक प्रणाली प्रइवेट कम्पनियो की तरह है जो व्यक्ति पूजक ,अल्पायु व सिद्धान्त विहिन होती हैं,यही से हमारा लोकतंत्र प्रारंभ होता है,यह दल नितान्त अलोकतांत्रिक ढंग से यह निर्धारित करते है कि उनकी तरफ से कौन सा व्यक्ति औपचारिक रूप से लोकतंत्र में जनता का प्रतिनिधि होगा उनकी निष्ठा जनता से ज्यादा अपने दल के प्रति होती है कहने को तो जन प्रतिनिधि होते है लेकिप वास्तव में वह दल प्रतिनिध होते हैउनके सारे संसदीय आचरण दलगत भवना से पूर्ण होते है,ये संसद में जनता की इच्छा के बजाय अपने दल की इच्छा का ही प्रतिनिधित्व करते है उस दल की जिसकी संरचना ही प्रइवेट कम्पनी की तरह की है यानि एक व्यक्ति की इच्छा का प्रतिनिधित्व यही आकर लोक समाप्त हो जाता है और केवल तंत्र ही शेष रह जाता है
आवश्यकता है किसी देश में मजबूत लोकतंत्र की स्थापना के लिए वहाॅ काम करने वाले दलो में लांकतंत्र का विकास किया जाये दल के प्रारंभिक सदस्य से लेकर राष्टीय अध्यक्ष तक एक कठोर संवैधानिक व्यवस्था के तहत आबद़ध होने चाहिये ।
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