13 दिसंबर 2011

मंजिल

ये शाम यू ही ढलेगी 
ये रात यू ही चलेगी 
दिन का उजियाला आयेगा 
जीवन का फसाना गायेगा
ये पहिया यूही घूमेगा 
वक्‍त यू ही झूमेगा 
तुम चल सकते हो तो चल जाओ 
तुम ढल सकते हो तो ढल जाओ 
इतिहास यही दुहरायेगा 
अंजाम वही बतलायेगा
है यही फसाना दुनिया का
अंजाम पुराना दुनिया का
जो वक्‍त के आगे रहता है 
अंजाम वही बस सहता है
इतिहास वही दुहराता है 
मंजिल पर पहुच जो पाता है





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